लांगुरिया ऐसे डोले रे जैसे लंका में डोले हनुमान।
,आई अंगना जगदंबा भवानी
कठे मिलेगी ऐसी तगड़ी लौनी ।जासे थारी निजरा उतरेगी
पालकी में होके सवार चली रे, मैं तो अपनी मैया के द्वार चली रे।
उठो भवानी भोर भयो है, जल ढालन के आए मां।
बिगड़ी मेरी बना दे ,इस बार नवरात्रों में।
चौरासी घंटा बाजे रे ,मां काली के भवन में।
मां गुफा में बैठी हो,बड़ी सुंदर लगती हो।
भवन में बैठकर मैया, मुझे आवाज देती है।
पल्लो लटक, र म्हारो पल्लो लटक
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