Budhapa bairi koi na puche baat,
Category: विविध भजन
आरुग हे कलसा दाई आरुग बाती वो
सोते-सोते सोने सा जीवन व्यर्थ गुजारा है,
ओ बाईसा अब तो हमको बाबोसा के दर्श करा दो ना,
नाम जपले हरि दा प्यारे, जग मेला चार दीन दा,
प्रभु के सामने सर को झुकाओ काफी है,
रच डारे,, भर दिये भंडार ये जग ल रच डारे,
हम बनभौरी वाले हैं कहते घर घर ढोल बजा के
भूल गया मानव मर्यादा, जब कलयुग की हवा चली,
चुरू वाले चले आओ कहाँ हो,
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