कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है
Category: विविध भजन
मां बाप ने अपनी कमाई बच्चों पे लुटाई।
गोविन्दो गायो नहीं,तूने कईं कमायो बांवरा
कोई नहीं अपना, समझ मना,
थारा रंग महल में ,अजब शहर में ,आजा रे हंसा भाई, निर्गुण राजा पे, सिरगुण सेज बिछाई
करना होये सो करले रे साधो,
मनक जनम दुहेलो है,
हे राम रस मीठो घणो रे, जोगिया जी
मन मस्त हुआ फिर क्या बोले,
ओ बहना मेरी आ गया अंत, आखिर छोड़ चली में दुनियादारी।
नचना पैरा विच घुंगरू पाके,
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