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Praan pita ka abhishek  a bachchan kailash kher lyrics,बिलख रहा प्राण पिता का

धुंधला गया रे, सारा जहाँ ये,ज़ख्म ये गेहरा मुझ में हुआ रे।अब क्या करूँ मैं, तू ही बतादे,
जीने की मुझको अब तू वजह दे।
क्या ये सच है तेरा, या तो भ्रम है मेरा।
ये समय का लेखा, है क्यों इतना बुरा।
मेरे भरोसे को तोड़ने लगा,पलकों के पानी से खेलने लगा।थम गया, थम गया वक्त ये मेरा
जाग जा, जाग जा परमेश्वरा।

बिलख रहा प्राण पिता का, तड़प रहा प्राण पिता का। बिलख रहा प्राण पिता का ,तड़प रहा प्राण पिता का।



अंदर-अंदर, उमड़ा समंदर ,अंदर-अंदर, उठा है बवंडर ।अंदर-अंदर बिखरा, अंदर-अंदर टूटा, अंदर-अंदर हारा, अंदर-अंदर रूठा। अंदर-अंदर भटका, जैसे खोया कोई। नीले अंबर में है काली गुफा कोई। जग हारा, बेचारा, बंजारा, लाचारा, फिरता रहा।

हथेलियों को जबसे तेरी थामा, खुदको तेरी नज़रों से है जाना।प्रेम तेरा, अमृत सा ।मोल तेरा, जग से जुदा। अँधेरी रातों का जोत ले लिया। तूफ़ान में मुझको अकेला किया। छल गया, छल गया परमेश्वरा। भर के मेरे घर को मुझे बेघर किया।



बिलख रहा प्राण पिता का। तड़प रहा प्राण पिता का। बिलख रहा प्राण पिता का, तड़प रहा प्राण पिता का।



अंदर-अंदर उमड़ा समंदर, अंदर-अंदर उठा है बवंडर। धुंधला गया रे, सारा जहाँ ये। ज़ख्म ये गेहरा मुझ में हुआ रे।

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