राम राम राम राम राम राम राम राम
शिव अंश वायु वंश,सूर्य के समान तेज ,करके साधना जो सिद्धियों को साधते।नैन स्वर्ण के समान, ज्ञानियों से ऊंचा ज्ञान, करते राम का ही ध्यान वह आकर दे। वज्र के शरीर पे तने हुए सफेद वस्त्र भी ये गाते गुणगान महावीर के। मुख पर शिवा जो सदैव से अमर है, वही शिवा की सौगंध लेकर साधु संत तारते। फाल्गुन के शखा अर्जुन,कमान रखा पिंग, अक्षय जिनके नयन भूरे,करे क्षण में मोहित रावण, की सत्ता दो की सेवा में लगाया राम काज के लिए,विनम्र काज के लिए ही क्रोधित ,राम काज के लिए गोवर्धन उठाया, रामकाज को समय पर संजीवनी बुलाया, रामकाज को समुद्र को छलांग में वो लांघे, रामकाज के लिए अमर युगे युगे बिताए।
हनुमान लला हनुमान लला, श्री राम के तुम हो प्राण लला।हनुमान लला हनुमान लला, श्री राम के तुम हो प्राण लला। भक्तों के तुम्हारी कौन कहे, श्री राम का तुमने कष्ट हरा।श्री राम का तुमने कष्ट हरा।
प्रभु प्रसन्नता के लिए चाहे प्राण दे, मन में शुद्धता अखंड ना प्रमाण दे। हाथ जोड़ के पड़े चरण में, सेवा में है समर्पित,समुद्र क्या ब्रह्मांड भी यह लांघ दे। राम काज पर अटूट विश्वास जिनका, सेवा में सदैव रहना गर्व और उल्लास से। साधु संत भी जो बनना चाहे दास, जिनके मन कभी ना भरे राम नाम की वह प्यास से। क्षमता इतनी सूर्य देव, धर मुंह में रोका, इंद्र ने किया प्रहार, वज्र से बचाने को ब्रह्मांड पाया वरदान, सभी देवी देवता से वही वरदान करें,सेवा में हुवा सुंदरकांड शनि देव का घमंड तोड़ा, किया यह वचन हरि के दास से ही नाता तोड़ा शनि ने स्वयं, उपलब्धियां की कोई ,इच्छा ना राखी कभी, केवल सेवा में लगाया अपना मन वचन प्राण।
हनुमान लला हनुमान लला, श्री राम के तुम हो प्राण लला।हनुमान लला हनुमान लला, श्री राम के तुम हो प्राण लला।भक्तों के तुम्हारी कौन कहे, श्री राम का तुमने कष्ट हरा।श्री राम का तुमने कष्ट हरा।
राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम।