भाई कोई सतगुरू सन्त कहावै।जो
नैनन अलख लखावै।नैनन अलख लखावै। तोलत डिगे ना बोलत बिसरे,हंस उपदेश बनाए।
प्राण पूजे किरिया ते न्यारा, सहज समाधी सिखायै ।सतगुरू सन्त कहावै।सतगुरू सन्त कहावै।
द्वार न रूँधे पवन न रोके, नहि भव खंड तजावै।द्वार न रूँधे पवन न रोके, नहि भव खंड तजावै।
यह मन जाय जहाँ लग जब ही, परमातमा दरसावै।सतगुरू सन्त कहावै।सतगुरू सन्त कहावै।
करम करै निःकरम रहै जो, ऐसी जुगत लखावै।करम करै निःकरम रहै जो, ऐसी जुगत लखावै।
सदा विलास त्रास नहि तन में, भोग में जोग जगावै।सतगुरू सन्त कहावै।सतगुरू सन्त कहावै।
धरती पानी आकाश पवन में, अधर मड़ैया छावै। धरती पानी आकाश पवन में, अधर मड़ैया छावै। सुन्न सिखर के सार सिला पर, आसन अचल जमावै ।सतगुरू सन्त कहावै।सतगुरू सन्त कहावै।
भीतर रहा सो बाहर देखे, दूजा दृष्टि न आवै ।भीतर रहा सो बाहर देखे, दूजा दृष्टि न आवै । कहत कबीर हंस सती न्यारी, आवा गमन मिटावे।सतगुरू सन्त कहावै।सतगुरू सन्त कहावै।कोई सतगुरू सन्त कहावै,कोई सतगुरू सन्त कहावै।नैनन अलख लखावै।नैनन अलख लखावै।