रंग लागो रे राम को, सो रँग कदे न जाई रे । हरि रँग मेरो मन रॅग्यो, और न रंग सुहाई रे ॥ रंग लागो रे राम को, सो रँग कदे न जाई रे । हरि रँग मेरो मन रॅग्यो, और न रंग सुहाई रे ॥
अविनाशी रँग ऊपनो, रच मच लागो चोलो रे । सो रँग सदा सुहावनो, ऐसो रंग अमोलो रे ॥ रंग लागो रे राम को, सो रँग कदे न जाई रे । हरि रँग मेरो मन रॅग्यो, और न रंग सुहाई रे ॥
हरि रँग कदे न ऊतरै, दिन दिन होइ सुरङ्गो रे । नित नयो निर्वाण है कदे न हैला भंगो रे ॥ रंग लागो रे राम को, सो रँग कदे न जाई रे । हरि रँग मेरो मन रॅग्यो, और न रंग सुहाई रे ॥
साचो रँग सहजै मिल्यो, सुन्दर रङ्ग अपारो रे । भाग बिना क्यों पाइये, सब रँग माँहीं सारो रे ॥रंग लागो रे राम को, सो रँग कदे न जाई रे । हरि रँग मेरो मन रॅग्यो, और न रंग सुहाई रे ॥
अवरण को का वरणिये, सो रँग सहज स्वरूपो रे । बलिहारी उस रङ्गकी, जन दादू देख अनूपो रे ॥ रंग लागो रे राम को, सो रँग कदे न जाई रे । हरि रँग मेरो मन रॅग्यो, और न रंग सुहाई रे ॥