जिस सायब ने सृष्टि रचाई, वो मालिक है सब के है माय। एक पलक में खलक रचाया, जिनका कोई सुमार नही। आप ही थापे आपोउ थापे, औरो की सुनता नही। जो कोई उनको अर्ज करे तो, बिन मर्जी सुनता नही। अरे मर्जी ऊपर ईश्वर रहता, अपने ही आधार। सांवरिया री महिमा, ऐसी अगम अपार ।
कर्म करे कोई धर्म करे कोई, तीर्थो को जाता भाई। तरह तरह की देख मूर्तिया, अकल कियो माने नही। जल पत्थर की है सब पूजा, और देव दरशे नही। ए मनो कामना पुरण कर दो,ऐसी है सिमरत साईं। बाहिर भीतर जड चेतन में, रास रहियो एक सास।सांवरिया री महिमा, ऐसी अगम अपार ।
ज्ञान करे कोई ध्यान करे कोई, उल्टा स्वास चढाता है।दशो इंद्रिया दमन करके, प्राण अपाण मिलाता है। खेसर भुसर सासर उन मूनी, अगोसरी कोई ध्याता है। ससीभन का साद सरोदा, आठोई पोर चलाता है, आठ पोररी चौछठ घड़िया, लगे रहियो एक तार।सांवरिया री महिमा, ऐसी अगम अपार ।।
पोचो इंद्री पोचो प्राणा, ताको बंद लगाता है। मुनि होकर मुख नही बोले, सैनी में समझाता है। उड़ जाता कोई गढ़ जाता कोई, अग्नि में जल जाता है। हजार वर्ष तक देह राखले, तोई पार नही पाता है। खड़ा खड़ा कोई पड़ा पड़ा, हरदम है हुशियार रे। सांवरिया री महिमा, ऐसी अगम अपार ।
ग्यान ध्यान में जान नही,सेवा युगती साधू नही। तीन लोक में हुकुम आपका, पता एक हिलता नही।को जगत मुगत के दाता,उबार लो शरणा माय। धर्मी दास की आहि वीनती,बेड़ा लगा दो पार,सांवरिया री महिमा, ऐसी अगम अपार ।
जब जब भीड़ पड़े भक्तो पर, आप लेवे अवतार।साँवरिया री महिमा, ऐसी अगम अपार ।
जिस सायव ने सृष्टि रचाई, वो मालिक है सब के है माय। एक पलक में खलक रचाया, जिनका कोई सुमार नही। आप ही थापे आपोउ थापे, औरो की सुनता नही। जो कोई उनको अर्ज करे तो, बिन मर्जी सुनता नही। अरे मर्जी ऊपर ईश्वर रहता, अपने ही आधार। सांवरिया री महिमा, ऐसी अगम अपार ।