राम रस मीठा रे, कोई पीवै साधु सुजाण । सदा रस पीवै प्रेम सूँ सो अबिनासी प्राण।राम रस मीठा रे, कोई पीवै साधु सुजाण । सदा रस पीवै प्रेम सूँ सो अबिनासी प्राण।
इहि रस मुनि लागे सबै, ब्रह्मा – बिसुन – महेस ।इहि रस मुनि लागे सबै, ब्रह्मा – बिसुन – महेस । सुर नर साधू संत जन, सो रस पीवै सेस ।।
सिद्ध साधक जोगी-जती, सती सबै सुखदेव ।सिद्ध साधक जोगी-जती, सती सबै सुखदेव । पीवत अंत न आवई, ऐसा अलख अभेव ।।
इहि रस राते नामदेव, पीपा अरु रैदास ।इहि रस राते नामदेव, पीपा अरु रैदास । पिवत कबीरा ना थक्या अजहूँ प्रेम पियास ।।
यह रस मीठा जिन पिया, सो रस ही माहिं समाई।यह रस मीठा जिन पिया, सो रस ही माहिं समाई । मीठे मीठा मिली रह्या, ‘दादू’ अनत न जाई ।।