म्हारी उमर अमावस सी काली थे चांद हो। म्हारी उम्र दुपहरी में तपती थे छांव हो। साजन घर आंगन उमर या बीते सोच सोच में मुस्काऊं। हां बाता थारी सपने में चाले सोच सोच में इत्तराऊं। सावन की शरारत झिरमिर बरसे चाह में थारी भीगी हूं। ना चाह जगी कभी गहना कि, मैं खुश माथे की बिंदी सु।सावन की शरारत झिरमिर बरसे चाह में थारी भीगी हूं। ना चाह जगी कभी गहना कि, मैं खुश माथे की बिंदी सु।
संगम सागर से झरने का जैसा यह इश्क सुहाना है। ना माप सका इसको कोई ना माप ना कोई पैमाना है। दुनिया से इसे छुपाना है ,पर दिल करे सबको बताना है। तू इश्क में भीगी फिरती है सावन तो सिर्फ बहाना है।
दिन लागे जो साल कोई, सदिया सो लागे महीना है। दिन बंधन को कद आसी यो बांध सफर को झीनो है। देखूं दिनभर खुद ने कांच में सांझ रंग सो चेहरों है।खिली है लाली गाला पे मेहंदी को रंग भी गहरो है।सावन की शरारत झिरमिर बरसे चाह में थारी भीगी हूं। ना चाह जगी कभी गहना कि, मैं खुश माथे की बिंदी सु।
हर शब्द में तु, जज्बात में तु। हर ख्वाब रात एहसास में तु। जीवन के सफर में साथ तेरो, हर मोड़ कदम हर राह में तु।हर शब्द में तु, जज्बात में तु। हर ख्वाब रात एहसास में तु। जीवन के सफर में साथ तेरो, हर मोड़ कदम हर राह में तु।हो तूं जो राग में रागिनी हूं।हो तूं जो नाथ अर्धांगिनी हूं। ना शुध बुध है दुनिया की, मैं थारी प्रीत में बावली हूं।सावन की शरारत झिरमिर बरसे चाह में थारी भीगी हूं। ना चाह जगी कभी गहना कि, मैं खुश माथे की बिंदी सु।
सावन की शरारत झिरमिर बरसे चाह में थारी भीगी हूं। ना चाह जगी कभी गहना कि, मैं खुश माथे की बिंदी सु।सावन की शरारत झिरमिर बरसे चाह में थारी भीगी हूं। ना चाह जगी कभी गहना कि, मैं खुश माथे की बिंदी सु।