दोहा,चाकी चाकी सब कहें, कीली कहें ना कोय,
जो कीली से लाग रहा, वाको बाल ना बाँका होय,
कोई नहीं अपना, समझ मना,
धन दौलत तेरा माल खजीना,
दो दिन का सपना, समझ मना,
कोई नहीं अपना, समझ मना,
नंगा आना, नंगा जाना,
नहीं कपडा रखना, समझ मना,
कोई नहीं अपना, समझ मना।कोई नहीं अपना, समझ मना,
त्रिकुटी में से जान निकल गई,
मुंह पर डाल्यो ढकना, समझ मना,
कोई नहीं अपना, समझ मना।कोई नहीं अपना, समझ मना,
चार जना मिल खटिया उठाना,
जंगल बीच रखना, समझ मना,
कोई नहीं अपना, समझ मना।कोई नहीं अपना, समझ मना,
जंगल की लाइ लकड़ी की मौली,
उन से तो फूंकना, समझ मना,
कोई नहीं अपना, समझ मना।कोई नहीं अपना, समझ मना,
कहत कबीर सुनो भाई साधो,
कहे हो कबीर सुनो मेरे साधो,
वो ही है घर अपना, समझ मना,
कोई नहीं अपना, समझ मना।कोई नहीं अपना, समझ मना,