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विविध भजन

Jangal ko jogi bangyo re chhod bhartari sabne,जंगल को जोगी बन गयो रे छोड़ भरतरी सबने,

जंगल को जोगी बन गयो रे छोड़ भरतरी सबने।

जंगल को जोगी बन गयो रे छोड़ भरतरी सबने।जंगल को जोगी बन गयो रे छोड़ भरतरी सबने।

राजपाट और महल मालिया छोड़ दिया पल छीन में।राजपाट और महल मालिया छोड़ दिया पल छीन में।जंगल को जोगी बन गयो रे छोड़ भरतरी सबने।जंगल को जोगी बन गयो रे छोड़ भरतरी सबने।

मन के माही त्रिष्णा जागी गुरु दर्शन से दुविधा भागी।मन के माही त्रिष्णा जागी गुरु दर्शन से दुविधा भागी। जा जंगल में गुरु बनाया भरा जोध जोबन में।जंगल को जोगी बन गयो रे छोड़ भरतरी सबने।जंगल को जोगी बन गयो रे छोड़ भरतरी सबने।

गोरख बोले फेरी लाओ पिंगला ने मां हर बुलाओ।गोरख बोले फेरी लाओ पिंगला ने मां कहर बुलाओ। जा उज्जैन नगर में राजा ठहर करी महलन में।जंगल को जोगी बन गयो रे छोड़ भरतरी सबने।जंगल को जोगी बन गयो रे छोड़ भरतरी सबने।

टेर सुनी जद पिंगला रानी भानु देख हुई हैरानी।टेर सुनी जद पिंगला रानी भानु देख हुई हैरानी।खाय तिवाड़ो पड़ी धरण में धीर नहीं नैनन में।जंगल को जोगी बन गयो रे छोड़ भरतरी सबने।जंगल को जोगी बन गयो रे छोड़ भरतरी सबने।

प्राण पति काई रंग लगायो ,जोगी वेश कईयां मन भायो।प्राण पति काई रंग लगायो ,जोगी वेश कईयां मन भायो। कहीं मालुनी सुनो पिंगला, ले कालक्यां री मन में।जंगल को जोगी बन गयो रे छोड़ भरतरी सबने।जंगल को जोगी बन गयो रे छोड़ भरतरी सबने।

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