ब्रहणी बैठी पीहर में, पियो बसे परदेश , खान पान सब त्यागिया रे, त्यागिया वस्त्र वेश।
पियाजी, उभी मैं सरवर तीर । नैणां सूं ढलक्यो नीर पियाजी, उभी मैं सरवर तीर ॥
धूणी धूखे ज्यूं काळजो रे, जळजळ गयो रे शरीर । मछली ज्यूं तड़फत फिरूं रे, कद होसी समदर सीर पियाजी, उभी मैं सरवर तीर ॥ नैणां सूं ढलक्यो नीर पियाजी, उभी मैं सरवर तीर ॥
सूता नी आवे नींदड़ी रे, जागू तो नहीं रे सुहाय । विरह काले नाग ज्यू रे, काढ काळजो खाय सजन म्हारा, उभी मैं सरवर तीर ॥ नैणां सूं ढलक्यो नीर पियाजी, उभी मैं सरवर तीर ॥
बेदरदी पिया दया नहीं आई रे, विरह गयो रे लगाय । कयो चरणों रे माँय राखसु जी, अध बिच दीवी छिटकाय पियाजी, उभी मैं सरवर तीर ॥ नैणां सूं ढलक्यो नीर पियाजी, उभी मैं सरवर तीर ॥
रूप स्वरूप आपरो है, ज्यां ने झुर रही ब्रहणी अनेक । सिमरत दासी’ आपरी रे, अरे दया हमारी देख सजन म्हारा, उभी मैं सरवर तीर । नैणां सूं ढलक्यो नीर पियाजी, उभी मैं सरवर तीर ॥
पियाजी, उभी मैं सरवर तीर । नैणां सूं ढलक्यो नीर पियाजी, उभी मैं सरवर तीर ॥पियाजी, उभी मैं सरवर तीर । नैणां सूं ढलक्यो नीर पियाजी, उभी मैं सरवर तीर ॥