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विविध भजन

Waha mera Hansa rahwaya ,वहाँ मेरा हंस रहवाया हे धर्मी,

वहाँ मेरा हंस रहवाया हे धर्मी,



दोहा, कहे सन्त सगराम,
राम ने भूलू कीकर,
भूलियो भुंडी होय,
माजनो जासी भीखर।
भीखर जासी माजनो,
देवे गधे री जूण,
मोरो पड़सी टाकिया,
ऊपर लद सी लूण।
ऊपर लद सी लूण,
चढ़ावे सामी शिखर,
कहे सन्त सग राम,
राम ने भूलू कीकर।



वहाँ मेरा हंस रहवाया हे धर्मी,वहाँ मेरा हंस रहवाया।वहाँ नहीं चंद भाण कोनी रजनी,
नहीं रे धूप नहीं छाया।

पग बिना पंथ मग बिना मार्ग,
पर बिना हँस उड़ाया,
चालत खोज मंडे नहीं उनका,
बेगम जाय समाया,
धर्मी वहाँ मेरा हँस रहवाया।।




झल बिना पाल पाल बिन सरवर,
बिना रैणी रहवाया,
बिना चोच हंसा चूण चुगे वो,
सीप बिना मोती पाया,
धर्मी वहाँ मेरा हँस रहवाया।।




हैं वो अथाग थाग नहीं उणरे,
चर अचर माही थाया,
जल थल वेद वो प्रगट करके,
गुरु मिल्या गम पाया,
धर्मी वहाँ मेरा हँस रहवाया।।

किसको केऊ कुण म्हारी माने,
सतगुरु मोय लखाया,
भूल्योड़ा जीव भटक मर जावे,
दास कबीर फरमाया,
धर्मी वहाँ मेरा हँस रहवाया।।




धर्मी वहाँ मेरा हँस रहवाया,
वहाँ नहीं चंद भाण कोनी रजनी,
नहीं रे धूप नहीं छाया।।

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