जगा जोत अम्बे की, मना तेरे मन मंदिर में देख। जगा जोत अम्बे की,
तेरे अंदर चार चोर, पहले गर्दन उनकी मरोड़ बाहर मच रया शोर।जगा जोत अम्बे की, मना तेरे मन मंदिर में देख। जगा जोत अम्बे की,
तेरे अंदर फूलों की शेज् क्यों नही जाता उस पर लेट, उड़ रही बालू रेत।जगा जोत अम्बे की, मना तेरे मन मंदिर में देख। जगा जोत अम्बे की,
तेरे अंदर बज रया बाजा, तु कहता हु आजा आज्या, आकर ज्योत में ज्योत मिलाज्या।जगा जोत अम्बे की, मना तेरे मन मंदिर में देख। जगा जोत अम्बे की,
हम मैया जी सबके सर, जैसे मिश्री घुल खीर कह गए दास कबीर।जगा जोत अम्बे की, मना तेरे मन मंदिर में देख। जगा जोत अम्बे की,