तर्ज… पवन करे शोर
सगोजी र घर मं क्यों मच रयो शोर । सगोजी री घर वाळी न लेग्यो काळो चोर ।
सुत्या सगीजी म्हारा, रंग महल मं । सुबह उठ के देखी, कोनी, आपरी पलंग पर । अब खोजण लाग्या सगोजी, देखी ब चारूं और । सगोजी री घर वाळी न लेग्यो काळो चोर ।
कमरा मं देखी सगी न, रसोईयां मं देखी। आड़ोस्यां र देखी सगी न, पाड़ोस्यां र देखी। जद लाधी कोनी सगीजी, भाज्या थाणां री और । सगोजी र घर घर वाळी न लेग्यो काळो चोर ।
रपट लिखाई सगोजी, घरां न पधारया ।आपरी जोयड़ न, खड़ी दरवाजे मं पाया।
म्हार टाबरीया री मम्मी, गई क्यूं मन छोड़। सगोजी री घर वाळी न लेग्यो काळो चोर ।
सगीजी न देख, सगोजी रोवण लाग्या । आंसूंवां स्यूं, पगला, घोवण लाग्या । देखो ए लुगायां, आ प्रीत बड़ी जोर । सगोजी री घर वाळी न लेग्यो काळो चोर ।