Categories
राम भजन लिरिक्स

Siya khele janak Darwar baras bhayi saat ki,सिया खेले जनक दरबार बरस भई सात की,ram bhajan

सिया खेले जनक दरबार बरस भई सात की।

सिया खेले जनक दरबार, बरस भई हरे हरे
बरस भई सात की।सिया खेले जनक दरबार, बरस भई हरे हरे,बरस भई सात की।



सात बरस की भई सिया जब इत उत खेलन जाय।माँग करे चोटी गुथे रे, हर कोई देख सराय।
बरस भई हरे हरे, बरस भई सात की।
सिया खेले जनक दरबार,बरस भई हरे हरे
बरस भई सात की।



चौखट चौका लीप लियो है, चारों कौनो पुताय।
पराश राम का धनुष रखा है, अचक ही लियो है उठाय।बरस भई हरे हरे, बरस भई सात की।
सिया खेले जनक दरबार,बरस भई हरे हरे
बरस भई सात की।



रानी तब राजा से बोली, सुनो राजा मेरी बात।
जो कोई या धनुष को तोड़े, वहीं को सिया है ब्याहो।बरस भई हरे हरे, बरस भई सात की।
सिया खेले जनक दरबार,बरस भई हरे हरे
बरस भई सात की।



तुलसी दास आस रघुवर की, हरी चरणन बलिहार।जाके मुकुट बंधिनी सोहे, वहीं को सिया है ब्याहो।बरस भई हरे हरे, बरस भई सात की।सिया खेले जनक दरबार,बरस भई हरे हरे
बरस भई सात की।

Leave a Reply

Please log in using one of these methods to post your comment:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s