रामजी की निकली सवारी, झांकी की शोभा है न्यारी। लक्ष्मण सिया संग बैठे रघुवीरा, बैठे चरणों में गदाधारी।रामजी की निकली सवारी, झांकी की शोभा है न्यारी।
शुक्ल पक्ष नवमी की चैत्र के मास थी। कौशल्या दशरथ के बालक की आस थी। जग के कल्याण हेतु भक्तों के पास में। प्रभु अवतार लिए अवध निवास में। बाजे नगाड़ा गूंजी शहनाई। आंगन रंगोली खुशियों की छाई। खीर और मिश्री रबड़ी मलाई। सारे नगर में बटी है मिठाई। दर्शन अभिलाषी अयोध्यावासी। आए हैं सारे नर नारी। रामजी की निकली सवारी, झांकी की शोभा है न्यारी।रामजी की निकली सवारी, झांकी की शोभा है न्यारी।
चाहे चौराहा हो या हो गली। केसरिया रंग में दुनिया ढली। ध्वजा ले हाथ में भक्तों के साथ में। राम प्रभु की सेना चली। रामनवमी की भीड़ है भारी। आज है झूमे दुनिया सारी। हाथों में डंडे डंडे पर झंडे। उस पर नजर आते हैं धनुर्धारी। सारा जमाना होकर दीवाना। बोले यह विष्णु के अवतारी।रामजी की निकली सवारी, झांकी की शोभा है न्यारी।रामजी की निकली सवारी, झांकी की शोभा है न्यारी।
रामजी की निकली सवारी, झांकी की शोभा है न्यारी। लक्ष्मण सिया संग बैठे रघुवीरा, बैठे चरणों में गदाधारी।रामजी की निकली सवारी, झांकी की शोभा है न्यारी।