तर्ज, जीजा जोबणिया
कन्हैया थारी बांसुरी जलेबी भरी रस की। थारे सागे नाचुली म्हारे जचगी।
मैं जाति की गुजरी जी थे हो जात अहीर।आपा दोन्युं एयां जियां मालपुवा और खीर। थारे नाम की चाल ह मारे हिचकी।।थारे सागे नाचुली म्हारे जचगी।कन्हैया थारी बांसुरी जलेबी भरी रस की। थारे सागे नाचुली म्हारे जचगी।
मैं हूं लाली हाथ की जी थे मेहंदी रा पान।आपा दोनू एयां लागा जैयां सिरोली आम। मेहंदी हाथों में भंवरलाल रचगी।थारे सागे नाचुली म्हारे जचगी।कन्हैया थारी बांसुरी जलेबी भरी रस की। थारे सागे नाचुली म्हारे जचगी।
मैं हूं दासी आपकी चंद्रावल मारो नाम। दिल से मैं तो भई दीवानी सुन मुरली की तान। आख्या म्हारी तो शर्म से मिचगी।थारे सागे नाचुली म्हारे जचगी।कन्हैया थारी बांसुरी जलेबी भरी रस की। थारे सागे नाचुली म्हारे जचगी।
मैं हूं थारी चांदनी जी थे हो महाराज चंद्र। मिश्री से भी मीठा लागो जईया कलाकंद। गुजरी गाई रे गोपाल ब्रज की। थारे सागे नाचुली म्हारे जचगी।कन्हैया थारी बांसुरी जलेबी भरी रस की। थारे सागे नाचुली म्हारे जचगी।