गंगा नाहया पर्वत को पाया तू है कहा
ये दुनिया छोड़ी मैने मन सजाया तू है कहा।
तुम दरबदर की राहो में या हो कही शिवालो में।
मेरे साथ ही तुम हो कही फिर क्यू नही निगाहो में।जब लौ उठी इस दिल में तो एहसास हूवा।
तुझमे शिवा मुझमे शिवा तन में शिवा मन में शिवा।ओम नमः शिवाय
मन की गहराई में तू था चाहों में तेरी में चला।
तेरी राहो में ही खोके खुद से ही में आ मिला।
अब ना रही पल की खबर जो तू मिला है इस क़दर।समा गया तुझमे कही भटका था जो ये बेसबर।हर ओर से बस एक धुन मैं सुन रहा।तुझमे शिवा मुझमे शिवा तन में शिवा मन में शिवा।ओम नमः शिवाय
सत्य-असत्य में उलझी दुनिया अपने करमो से है परे।समझे ना क्यू तेरी माया तूने ही हर रूप धरे।तुझमे शिवा मुझमे शिवा तन में शिवा मन में शिवा।ओम नमः शिवाय
है शोर में खामोशी तू खामोशी में एक नाद है।
संगीत है जीवन का तू अनसुना एक राग है।
आँख मूंदे भीतर ही वो है बसा।तुझमे शिवा मुझमे शिवा तन में शिवा मन में शिवा।ओम नमः शिवाय