तर्ज, खईके पान बनारस वाला
दूल्हा बन गया भोला भाला,
गांजा भांग का पिने वाला,
इसकी आँख नशे में लाल,
देखो लंबे लंबे बाल,
के दूल्हा कैलाश पर्वत वाला।।
ना घोड़े ना हाथी, सब पैदल बाराती,
ना घोड़े ना हाथी, सब पैदल बाराती,
ना संगी ना साथी, इसकी कोई ना जाती,
लगता है अनाथ, इसके मैया है ना बाप,
दीखता है ये कोई सपेरा, पाल रखे है साँप,
सबकी जुबाँ पे, है यही बात, के दूल्हा कैलाश पर्वत वाला।।
ना हाथो में मेहंदी, ना फूलो का सेहरा,
ना हाथो में मेहंदी, ना फूलो का सेहरा,
ना तन पे है हल्दी, ये बूढ़ो सा चेहरा,
कैसा है ये दूल्हा, जिसने दाड़ी ही ना बनाई,
ऐसा दूल्हा ना देखा कमाल, के दूल्हा कैलाश पर्वत वाला।।
दूल्हा बन गया भोला भाला,
गांजा भांग का पिने वाला,
इसकी आँख नशे में लाल,
देखो लंबे लंबे बाल,
के दूल्हा कैलाश पर्वत वाला।।