मनवा भूल गयो ईश्वर ने ,
अब तेरो कोन संगाती रे।
कौन संगाती रे ,
अब तेरो कौन संगाती रे।
मनवा भूल गयो ईश्वर ने ,
अब तेरो कोन संगाती रे।
नर तू भूल्यो उस मालिक ने ,
कर कर चाली रे।
पाप की पोट धरी सिर ऊपर ,
वजन लखासी रे।
मनवा भूल गयो ईश्वर ने ,
अब तेरो कोन संगाती रे।
सोई एक अनेक स्वरुप बना ,
परि पूरण है जल में थल में।
ब्रह्मानंद करी गुरदेव दया ,
भवसागर का भय उठ गया।
पूरण प्रेम लगा दिल में तब ,
नेम का बंधन छूट गया।
इतना पाप करया नर हद से ,
क्या फल पासी रे।
ईश्वर आगे क्या तलासी ,
लेखो चाह्सी रे।
मनवा भूल गयो ईश्वर ने ,
अब तेरो कोन संगाती रे।
ईस देहि का गर्व ना करना ,
एक दिन जासी रे।
करना हो सो कर ले बन्दा ,
फिर पछतासी रे।
मनवा भूल गयो ईश्वर ने ,
अब तेरो कोन संगाती रे।
सुखीराम जी नित उठ गावे ,
भजो बृज वासी रे।
वो ही प्रभुजी पार उतारे ,
हरी अविनाशी रे।
मनवा भूल गयो ईश्वर ने ,
अब तेरो कोन संगाती रे।
मनवा भूल गयो ईश्वर ने ,
अब तेरो कोन संगाती रे।
कौन संगाती रे ,
अब तेरो कौन संगाती रे।
मनवा भूल गयो ईश्वर ने ,
अब तेरो कोन संगाती रे।