सखी पनघट पर यमुना के तट पर लेकर पहुंची मटकी,भूल गयी सब एक बार ही जब छवि देखि नटखट की,नी मैं कमली होई॥नी मैं कमली होई॥
देखत ही में हुईं बाँवरी उसी रूप में खोयी, देखत ही में हुईं बाँवरी उसी रूप में खोयी, नी मैं कमली होई॥नी मैं कमली होई॥
कदम के नीचे अखियाँ मीचे, खड़ा था नन्द का लाला, मुख पर हंसी हाथ में बंसी मोर मुकुट माला, तान सुरीली मधुर नशीली तान सुरीली मधुर नशीली तनमन दियो भिगोई,
नी मैं कमली होई॥नी मैं कमली होई॥
सखी पनघट पर यमुना के तट पर लेकर पहुंची मटकी,भूल गयी सब एक बार ही जब छवि देखि नटखट की,नी मैं कमली होई॥नी मैं कमली होई॥