मन्दिर मस्जिद गिरजाघर में, बाँट दिया भगवान को।धरती बाँटी सागर बाँटा, मत बाँटो इंसान को।।
दुख में मत घबराना पँछी, ये जग दुख का मेला है।चाहे भीड़ बहुत अम्बर में, उड़ना तुझे अकेला है।।
नन्हे कोमल पंख ये तेरे, और गगन की ये दूरी।
बैठ गया तो कैसे होगी, मन की अभिलाषा पूरी।
उसका नाम अमर है जग में, जिसने दुःख झेला है।।
चतुर शिकारी ने रखा है, जाल बिछाकर पग पग पर।फंस मत जाना भूल से पगले, पछतावैगा जीवन भर।लोभ में मत पड़ना रे पँछी, बड़े समझ का खेला है।।
जबतक सूरज आसमान पर, बढ़ता चला तूँ चलता चल।घिर जाएगा अंधकार जब, बड़ा कठिन होगा पल पल।
किसे पता है उड़ चलने की, आ जाती कब वेला है।।