तर्ज- मिलों ना तुम तो।
घर एक मंदिर तेरा, मात पिता ही भगवान है, जो ना ये समझे प्राणी, वो तो बड़ा ही नादान है,
मात पिता की सेवा जैसा, बन्दे और जगत में, कोई काम नहीं है, कोई काम नहीं है, मात पिता की सेवा करले, खुशियों से झोली भरले, समझ तेरे राम यही है, राधेश्याम यही है, मात पिता की सेवा जेसा,बन्दे और जगत में, कोई काम नहीं है, कोई काम नहीं है।।
भरम में बन्दे क्यों घिरता है, दर दर क्यों फिरता है, की चारो धाम यही है, की चारो धाम यही है, मात पिता की सेवा जेसा, बन्दे और जगत में, कोई काम नहीं है, कोई काम नहीं है।
सुन ले रे प्राणी तुझको, सारे ये वेद बताए रे, मात पिता के तन में, सारे देव समाए रे, सारे देव तू यही मना ले, तू इनको शीश झुका ले, की ठीक मुकाम यही है, की ठीक मुकाम यही है, मात पिता की सेवा जेसा, बन्दे और जगत में, कोई काम नहीं है,
तू क्यों भटकता डोले, राम मिलन की आस में, बाहर ये नाही दिखे, रहते है तेरे ही पास में, मात पिता को राजी करले, भव से पार उतरले, की फिर सुखधाम यही है, की फिर सुखधाम यही है, मात पिता की सेवा जेसा, बन्दे और जगत में, कोई काम नहीं है, कोई काम नहीं है।
करले तू सेवा इनकी, छोड़ के सारे काम रे, इनकी शरण में तुझको, मिल जाएगा सुखधाम रे, दर दर ठोकर क्यों खाता है, बाहर क्यों जाता है, की सब आराम यही है, की सब आराम यही है, मात पिता की सेवा जेसा, बन्दे और जगत में, कोई काम नहीं है,
घर एक मंदिर तेरा, मात पिता ही भगवान है, जो ना ये समझे प्राणी, वो तो बड़ा ही नादान है,