पंछिड़ा भाई कई बैठो तरसायो रे,
पीले त्रिवेणी का घाटे गंगा नीर,
मनड़ा को मैलो धोले रे,
हाँ हाँ वन वन क्यों डोले रै।
पंछिड़ा भाई कई बैठो अकड़ायो रे,
थारी गुरुजी जगावे हैलां पाड़,
घट केरी खिड़कियाँ ने खोलो रे,
हाँ हाँ वन वन क्यों डोले रै।
पंछिड़ा रे भाई हीरा वाली हाटां में ,
इणी माला का मोतीड़ा बिख्रया जाय रे ,
सुरता में नूरता पोले रे,
हाँ हाँ वन वन क्यों डोले रै।
पंछिड़ा भाई कई बैठो तरसायो रे,
पीले त्रिवेणी का घाटे गंगा नीर,
मनड़ा को मैलो धोले रे,
हाँ हाँ वन वन क्यों डोले रै।