मैं क्या जानू राम तेरा गोरख धंधा,
गोरखधंधा गोरखधंधा गोरखधंधा राम,
मैं क्या जानू राम तेरा गोरख धंधा…
धरती और आकाश बीच में सूरज तारे चंदा,
हवा बादलों बीच में बरखा पावनी दंदा राम,
मैं क्या जानू, राम तेरा गोरख धंधा…
एक चला जाए चार देते हैं कंधा,
किसी को मिलती आग किसी को मिल जाए फंदा,
मैं क्या जानू, राम तेरा गोरख धंधा…
कोई पड़ता घोर नरक कोई सुरभि सन्धा,
क्या होनी को अनहोनी नहीं जाने बंदा राम,
मैं क्या जानू, राम तेरा गोरख धंधा…
कहत कबीर प्रकट माया फिर भी नंर अंधा,
सब के गले में डाल दिया मोह माया का फंदा,
मैं क्या जानू, राम तेरा गोरख धंधा…
मैं क्या जानू राम तेरा गोरख धंधा,
गोरखधंधा गोरखधंधा गोरखधंधा राम,
मैं क्या जानू राम तेरा गोरख धंधा…