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विविध भजन

Man re hari bhajo hari bhajo Bhai,मन रे हरि भजो हरि भजो भाई,

मन रे हरि भजो हरि भजो भाई।

मन रे हरि भजो हरि भजो भाई।

जा बिन तेरे कोई नहीं भाई जान जान सुंदर काया।मन रे हरि भजो हरि भजो भाई।

तंत्र ने जानू मंत्र न जानू जानू जानू सुंदर काया। मालामाल छत्रपति राजा देखी खाया माया। मन रे हरि भजो हरि भजो भाई।

वेद ना जानू भेद ना जानू जानू एक ही रामा। पंडित विश् पचवारा कीना मुख कीनौ नीत नामा।मन रे हरि भजो हरि भजो भाई।

राजा अमरीश के कारण चक्र सुदर्शन धारे। दास कबीर को ठाकुर ऐसे भगत की शरण उभारे। मन रे हरि भजो हरि भजो भाई।

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