तर्ज,जिस भजन में राम का नाम न हो
उस कुवे का आखिर क्या करना जिस कुएं का पानी खारा हो।
उस घर में के अंदर क्या रहना जिस घर ना भाईचारा हो। उस मार् का आखिर क्या करना, जो खुद समय का मारा हो। उस द्वार पर जाकर क्या करना जहां मिलता नहीं सहारा हो।उस कुवे का आखिर क्या करना जिस कुएं का पानी खारा हो।
तुम कभी वहां पर मत जाना जहां तुम्हें ना जाए पहचाना। निर्धन की रूखी खा लेना पर अहंकार की मत खाना।उस कुवे का आखिर क्या करना जिस कुएं का पानी खारा हो।
जिस मन में कोई दया नहीं जिस तन में कोई हया नहीं। तूने दया किसी पर किया नहीं प्यासे को पानी दिया नहीं। बस लिया लिया ही जीवन में बदले में कुछ भी दिया नहीं। उस कुवे का आखिर क्या करना जिस कुएं का पानी खारा हो।
तूने पुण्य कभी कोई किया ही नहीं बस पा प ही पाप कमाया है। झोली की हेराफेरी से तूने ऊंचा महल बनाया है।।उस कुवे का आखिर क्या करना जिस कुएं का पानी खारा हो।
मुखड़ा पर मुखोटे लगे हुए है जहर से सारे भरे हुए। धोखा की जिनकी फितरत है बदनियत जिनकी नियत है। उस थाली में ही छेद करें जिस थाली में ये खाते हैं।उस कुवे का आखिर क्या करना जिस कुएं का पानी खारा हो।
उस कुवे का आखिर क्या करना जिस कुएं का पानी खारा हो।उस कुवे का आखिर क्या करना जिस कुएं का पानी खारा हो।