तर्ज- मिलो ना तुम तो हम घबराए
भज ले प्राणी रे अज्ञानी,दो दिन की जिंदगानी, वृथा क्यों भटक रहा है, वृथा क्यों भटक रहा है, झूठी माया झूठी काया, चक्कर में क्यों आया, जगत में भटक रहा है, जगत में भटक रहा है ।।
रतन मिला है तुझे,खो क्यों रहा है इसे खेल में, कंचन सी काया तेरी, उलझी है विषयों के बेल में, सूत और दारा वैभव सारा, कुछ भी नहीं तुम्हारा, व्यर्थ सिर पटक रहा है, व्यर्थ सिर पटक रहा है, भजलें प्राणी रे अज्ञानी, दो दिन की जिंदगानी, वृथा क्यों भटक रहा है,वृथा क्यों भटक रहा है, वृथा क्यों भटक रहा है।
भुला फिरे क्यों बन्दे, धन यौवन के उमंग में, माता पिता और बंधू, कोई चले ना तेरे संग में, मैं और मेरा तू और तेरा, है माया घेरा, व्यर्थ तू भटक रहा है, व्यर्थ तू भटक रहा है, भजलें प्राणी रे अज्ञानी, दो दिन की जिंदगानी, वृथा क्यों भटक रहा है, वृथा क्यों भटक रहा है।
योनियां अनेक भ्रमि, प्रभु की कृपा से नर तन पाया है, झूठे व्यसन में पड़कर, प्रभु से ना प्रेम लगाया है, गीता गाए वेद बताए, गुरु बिन ज्ञान ना आए, इसी से अटक रहा है, इसी से अटक रहा है, भजलें प्राणी रे अज्ञानी, दो दिन की जिंदगानी, वृथा क्यों भटक रहा है, वृथा क्यों भटक रहा है ।।
चंचल गुमानी मन, अब तो जनम को संभाल ले, फिर ना मिलेगा तुझे, अवसर ऐसा बारम्बार रे, रे अज्ञानी तज नादानी, भज ले सारंग पाणी, व्यर्थ सिर पटक रहा है, व्यर्थ सिर पटक रहा है,
भज ले प्राणी रे अज्ञानी,दो दिन की जिंदगानी, वृथा क्यों भटक रहा है, वृथा क्यों भटक रहा है, झूठी माया झूठी काया, चक्कर में क्यों आया, जगत में भटक रहा है, जगत में भटक रहा है ।।