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विविध भजन

Kya soch kare pagal manwa jo bit gaya so baat gaya,क्या सोच करें पागल मनवा,जो बीत गया सो बीत गया,

क्या सोच करें पागल मनवा,
जो बीत गया सो बीत गया,

क्या सोच करें पागल मनवा,
जो बीत गया सो बीत गया,
इस झूठे खेल में, मूल्य ही क्या,
कोई हार गया कोई जीत गया,
क्या सोच करे पागल मनवा।



हम चाहे वही हो जरुरी नहीँ,
आशाएँ कभी हुई पूरी कहीं,
रे सोच तनिक जीवन घट का,
श्वाँसा जल कितना रीत गया,
क्या सोच करे पागल मनवा।



प्रभु प्रेम पियूस पिया जिसने,
परहित हित जन्म लिया जिसने,
जीवन है वही जो जन जन के,
मृदु अधरों का बन मीत गया,
क्या सोच करे पागल मनवा।



जब सूर्य सा साथी मिलता है,
राजेश कमल तब खिलता है,
हर साँझ को कहता है पंकज,
हम कैसे मिले मीत गया,
क्या सोच करे पागल मनवा,
जो बीत गया सो बीत गया,
इस झूठे खेल में, मूल्य ही क्या,
कोई हार गया कोई जीत गया,
क्या सोच करे पागल मनवा।

क्या सोच करें पागल मनवा,
जो बीत गया सो बीत गया,
इस झूठे खेल में, मूल्य ही क्या,
कोई हार गया कोई जीत गया,
क्या सोच करे पागल मनवा।

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