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विविध भजन

Jaag piyari ab ka sowe ren gayi din kahe ko khowe,जाग पियारी अब का सोवै,रैन गई दिन काहे को खोवै।

जाग पियारी अब का सोवै
रैन गई दिन काहे को खोवै।

जाग पियारी अब का सोवै
रैन गई दिन काहे को खोवै।



जिन जागा तिन मानिक पाया
तैं बौरी सब सोय गँवाया
पिय तेरे चतुर तू मूरख नारी
कबहुँ न पिय की सेज सँवारी।

जाग पियारी अब का सोवै
रैन गई दिन काहे को खोवै।



तैं बौरी बौरापन कीन्हो
भर-जोबन पिय अपन न चीन्हो
जाग देख पिय सेज न तेरे
तोहि छाँड़ी उठि गए सबेरे।

जाग पियारी अब का सोवै
रैन गई दिन काहे को खोवै।



कहैं ‘कबीर’ सोई धुन जागै
शब्द-बान उर अंतर लागै
जाग पियारी अब का सोवै
रैन गई दिन काहे को खोवै ।

जाग पियारी अब का सोवै
रैन गई दिन काहे को खोवै।

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