हंस संत गत एक है, करे निज मोतीयो रो आहार, अगल वचन री आखड़ी, ऐसा है स्वभाव, एड़े मते जग में चालनो, भवजल उतरो पार।।
चाल चकोर की चालनो, करणों अग्नि से आहार, सुरताल लगी ज्यारी राम सु, दाजत नही लिगार, एड़े मते जग मे चालनो, भवजल उतरो पार।।
अनड पंखेरू आकाश बसे हैं, धरती नही मेले पांव, पंख पवन में पसार रया, ऐसा है निधार, एड़े मते जग मे चालनो, भवजल उतरो पार।।
पपियो प्यासी नीर को, नित पीवन की आस, पड़यो पानी नहीं पिये, अधर बूंद की आश, एड़े मते जग मे चालनो, भवजल उतरो पार ।।
कस्तूरी मृग नाभी बसे, ज्यारा करो विचार, आर्क प्रेम रस पीवनो, सोभा है निजसार, एड़े मते जग मे चालनो, भवजल उतरो पार ।।
आपो आप रा सोज ल्यो, सही नाम ने संभाल, संत शरणों में गुमनो भने है, निज नाम रो आधार, एड़े मते जग मे चालनो, भवजल उतरो पार।।
हंस संत गत एक है, करे निज मोतीयो रो आहार, अगल वचन री आखड़ी, ऐसा है स्वभाव, एड़े मते जग में चालनो, भवजल उतरो पार।।
हंस संत गत एक है, करे निज मोतीयो रो आहार, अगल वचन री आखड़ी, ऐसा है स्वभाव, एड़े मते जग में चालनो, भवजल उतरो पार।।