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विविध भजन

Mehnat ki kamayi ko aise na lutana tu,मेहनत की कमाई को,ऐसे ना लुटाना तू,

मेहनत की कमाई को,ऐसे ना लुटाना तू,



तर्ज – बचपन की मोहब्बत को

मेहनत की कमाई को,ऐसे ना लुटाना तू, खर्चों को घटाकर के, सेवा में लगाना तू।



राई से राई मिले, पर्वत बन जाता है, जब बून्द से बून्द मिले, सागर बन जाता है, खुद को समरथ करके, दुनिया को दिखाना तू, खर्चों को घटाकर के, सेवा में लगाना तू

महंगाई के युग में, पैसे का ही खेला है, जिसने दौलत जोडी, यहाँ उसका रेला है, यूँ व्यर्थ गँवा करके, पीछे पछताना तू खर्चों को घटाकर के, सेवा में लगाना तू।



जो खर्च ही करना है, इंसान पे खर्च करो, दीनो की मदद करो, दुखियों के दर्द हरो, ऐ ‘हर्ष’ तेरी माया, नेकी में लगाना तू।खर्चों को घटाकर के, सेवा में लगाना तू

मेहनत की कमाई को,ऐसे ना लुटाना तू, खर्चों को घटाकर के, सेवा में लगाना तू।

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