फागुन की ग्यारस आई, रंगो का उत्सव लाइ। रंग खेले बाबा श्याम धनी।
बाजे ढोलक शहनाई, खाटू में मस्ती छाई। रंग खेले बाबा श्याम धनी।
मोसम भी नया नवेला है, रंगों की पावन बेला है। लाखों भक्तों का रेला है। लेकिन मेरा श्याम अकेला है। रहा फिर भी सबको नचाई।
फागुन की ग्यारस आई, रंगो का उत्सव लाइ। रंग खेले बाबा श्याम धनी।
दरबार रंगा नए रंगों से, झंकार निकल रही चंगों से। कोई जय श्री श्याम पुकार रहा, कोई भर पिचकारी मार रहा। कोई रहा गुलाल उड़ाई। खाटू में मस्ती छाई।रंग खेले बाबा श्याम धनी।
फागुन की ग्यारस आई, रंगो का उत्सव लाइ। रंग खेले बाबा श्याम धनी।
गूंजे जयकारे खाटू में, उड़े रंग फुहारे खाटू में। सच कहता है राज अनाड़ी है।ये भक्त तेरे बलिहारी है। भागी दुख की परछाई।फागुन की ग्यारस आई, रंग खेले बाबा श्याम धनी।
फागुन की ग्यारस आई, रंगो का उत्सव लाइ। रंग खेले बाबा श्याम धनी।