प्रेम रा मारग बाक़ा रे ,
प्रेम रा मारग बाक़ा रे।
सूरा देवे शीश प्रेम में ,
अर्पण वाका रे।
प्रेम प्याला वो पिये ,
जो शीश दक्षिणा देत।
लोभी शीश नहीं देत है ,
नाम प्रेम का लेट।
नहीं है प्रेमी बाक़ा रे।
प्रेम रा मारग बाक़ा रे। टेर। ….
ये तो घर है प्रेम का ,
खाला का घर नाय।
शीश उतार धरयो चरणा में ,
जब बैठो घर माय।
मिटे मन कायर शंका रे ,
प्रेम रा मारग बाक़ा रे। टेर। ….
प्रेम न बाड़ी निपजे ,
प्रेम न हाट बिकाय।
राजा रानी रे चाव हो तो ,
सिर साठे ले जाय।
मुले मुक्ति रा नाका रे ,
प्रेम रा मारग बाक़ा रे। टेर। ….
योगी जग रा सेवरा ,
सन्यासी दरवेश।
प्रेम बिना पहुंचे नहीं ,
दुर्लभ हरी का देश।
लेश कर वर्णन थाका रे।
प्रेम रा मारग बाक़ा रे। टेर। ….
प्रेम प्याला वो पिये रे ,
चाखे अंधक रसाल।
दास कबीर जुगत कर पिया ,
मांगे शीश कलाल।
लगे नहीं काका बाबा रे।
प्रेम रा मारग बाक़ा रे। टेर। ….