ईश्वर जैसा देवा नाही, प्रेम जैसी सेवा नाहीं, ईश्वर जैसा देवा नाही।
मात-पिता सा पालक नाही, सेवक जैसा बालक नाही, अभेद जैसा ज्ञान नाही, वेद जैसा अज्ञान नाही।🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺 संतोष जैसा सुख नाही, लोभ जैसा दुख नाही।
कपाट जैसा काला नाही, सुध मन जैसी माला नाही। सेवा जैसी भक्ति नाही।🌺🌺🌺🌺🌺 विद्या जैसी शक्ति नाही।
सेवा जैसी भक्ति नाही, तृष्णा जैसा रोग नाही, संयम जैसा योग नाही। मृत्यु जैसा भय नाही,
अमर जैसा वहम नाही। कर्मों जैसी हुंडी नाही,भूख जैसे भुंडी नाही। अज्ञान जैसा अंधेरा नाही, ज्ञान जैसा उजीरा नाही।
जारी जैसा अवगुण नाही, निजारी जैसा सद्गुण नाही।जारी जैसा अवगुण नाही। पैसा जैसा प्यारा नाही, गाली जैसा खारा नाही।
कायर जैसा कपूत नाही, सौर्य जैसा सपूत नाही। मांगण जैसा खोटा नाही, दानी जैसा मोटा नाही।
अक्कल जैसी सोची ना ही, खेती जैसी रोजी नाही। मनुष्य जैसी योनि नाही, कुदरत जैसी होनी नाही। मनुष्य जैसी योनि नाही।
निंदा जैसा नरक नहीं, शोभा जैसा स्वर्ग नाही। होम जैसा जाप नाही, अभिमान जैसा पाप नाही।
मोह जैसा जंजीर नाही, विवेक जैसा वजीर नाही।आशा जैसी मीत नाही,पराधीन जैसा अमित नाही।
सज्जनों से मन मोड़ो नाही, दोस्तों से मन जोड़ो नाही।सज्जनों से मन मोड़ो नाही। बिना सुहाता बोलो ना ही, पर के अवगुण खोलो ना ही।
काम देख पछताओ ना ही, दुर्जन के घर जाओ ना ही। अपमान किसी का करिए ना ही, इज्जत किसी की हरिए नाही।
घनी गुलामी बनिए नाही, जान किसी की हानिये नही। अफीम दारू पीजे नाही, पर नारी संग कीजे ना ही।अफीम दारू पीजे नाही।
विषय भोग में फूलों नाही, ईश्वर भक्ति भूलो नाही। जा जहू के लाज नाही, झूठे का विश्वास नाही।
विद्या जैसा दान नाही, रोटी जैसा समान नाही। कुमार्ग में मरिए नाही, शुमार्ग में डरिए ना ही।
झगड़ा कुश्ती करिए ना ही, साधु शेती अडिये नाही।झगड़ा कुश्ती करिए ना ही।हाथों महिमा कीजे नाही, खोटा पैसा लीजिए ना ही।
बूढ़ा बिंद परणाजे नाही, कन्या को धन खाजे नाही। अपने इष्ट को ताजिए नाही, आन इष्ट को भजिये नाही।
वचन कर बदलीजे नाही, होतो पुत्तर दीजे नाही। अपनी हिम्मत हरिए ना ही, आश पराई करिए ना ही।अपनी हिम्मत हरिए ना ही,
घर आया का आदर कीजे,श्रद्धा सेती दान दीजे। मूर्ख सेवा सफल नहीं, सज्जन सेवा निष्फल नाही।
मैनावत जैसी माई नाही, मीरा जैसी बाई नाही। सरवन जैसा पूत नहीं, सूद जैसा अवधु नाही।
रावण जैसी रॉड नाही, भगवत जैसा उदार नाही,रावण जैसी रॉड नाही।अनसूया जैसी तिरिया नाही,अगस्त जैसी किरिया नाही।
हनुमान जैसा दास नाही, सूरज जैसा प्रकाश नाही।पिरथु जैसा राज नाही, बलि जैसा ताज नाही।
चंद्र जैसा शीत नाही, भरत जैसी प्रीत नाही। राम जैसा रण नाही,भीष्म जैसा प्रण नाही।राम जैसा रण नाही,
ब्रम्हचर्य जैसा धीर नाही, गंगा जैसा नीर नाही। ब्रह्मा जैसा अटल नाही, मन जैसा चंचल नाही।
दिलिप जैसी दया नहीं, शंकर जैसी माया नाही। ध्रुवा जैसा हठ नहीं, बर्बरीक जैसा भक्त नाही।
दुर्योधन जैसा अन्यायि नाही, विक्रम जैसा सन्याई नाही।दुर्योधन जैसा अन्यायि नाही, अन्याय पक्ष लीजिए नाही, पैसा कुमार्ग दीजे नाही।
ईश्वर जैसा दयाल नाही, सदगुरू जैसा दलाल नाही।
विशुद्धानंद अमृतमय सत्य अठोतर बोल। कर्म प्रेम से लीजिए बचन मना अनमोल।वचन मन का सुमर दोहा,सूत्र सत्य विवेक। विशुद्धानंद मोक्ष मिले करे जो पाठ नित एक।