तर्ज – ना कजरे की धार
जबसे किया है पार,
खाटू का तोरण द्वार,
और मिला तेरा दरबार,
बदली मेरी दुनिया है,
बदली मेरी दुनिया है,
बदली मेरी दुनिया है,
पहले था लाचार,
करता था सोच विचार,
अब मिल रहा सब का प्यार,
बदली मेरी दुनिया है,
बदली मेरी दुनिया है।।
जाते हैं श्याम कुंड में,
डुबकी जो मैंने लगाई
जीवन के हर पापों से,
मुक्ति है मैंने पाई,
खाटू की माटी में ही,
मेरा सारा संसार,
जब से किया हैं पार,
खाटू का तोरण द्वार,
और मिला तेरा दरबार,
बदली मेरी दुनिया है,
बदली मेरी दुनिया है।।
दर्शन के लिए अभिलाषा,
जब मैंने कदम बढ़ाया
मंदिर के रस्ते मैंने,
हर शख्स में तुझको पाया,
पड़ी नजरें जब शिखर पर,
बजे मन वीणा के तार,
जब से किया हैं पार,
खाटू का तोरण द्वार,
और मिला तेरा दरबार,
बदली मेरी दुनिया है,
बदली मेरी दुनिया है।।
ग्यारस का पावन दिन था,
भक्तों की लंबी कतारें,
कानों में सुनाई पड़े फिर,
हर तरफ तेरे जयकारे,
करी चौखट पार मैंने,
और हुआ तेरा दीदार,
जब से किया हैं पार,
खाटू का तोरण द्वार,
और मिला तेरा दरबार,
बदली मेरी दुनिया है,
बदली मेरी दुनिया है।।
भक्तों के संग कीर्तन में,
‘शानू’ ने रात बिताई,
‘पारस’ की धोक लगाकर,
फिर ‘शिवम’ ने मांगी बिदाई,
लगा मुझको कहे बाबा,
आते रहना हर बार,
जब से किया हैं पार,
खाटू का तोरण द्वार,
और मिला तेरा दरबार,
बदली मेरी दुनिया है,
बदली मेरी दुनिया है।
जबसे किया है पार,
खाटू का तोरण द्वार,
और मिला तेरा दरबार,
बदली मेरी दुनिया है,
बदली मेरी दुनिया है,
बदली मेरी दुनिया है,
पहले था लाचार,
करता था सोच विचार,
अब मिल रहा सब का प्यार,
बदली मेरी दुनिया है,
बदली मेरी दुनिया है।।