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विविध भजन

Manav kiska abhiman kare din chadhte utarkar aate hai,मानव किसका अभिमान करें ,दिन चढ़ते उतरकर आते है

मानव किसका अभिमान करें ,
दिन चढ़ते उतरकर आते है।

तर्ज,उठ जाग मुसाफिर

मानव किसका अभिमान करें ,
दिन चढ़ते उतरकर आते है।किस्मत जौ साथ नहीं देती,पत्थर भी उछल कर आते है।

जिसके दरवाजे देव सभी ,
देने को सलामी आते हैं।
किस्मत ने करवट ली पल में ,
पानी प पत्थर तीर जाते है।


मानव किसका अभिमान करें ,
दिन चढ़ते उतरकर आते है।किस्मत जौ साथ नहीं देती,पत्थर भी उछल कर आते है।

गण राज रावण कुम्भकरण ,
रण में रणवीर कहाते है।
उनकी सोने की लंका पर ,
वानर भी फ़तहे कर जाते है ,


मानव किसका अभिमान करें ,
दिन चढ़ते उतरकर आते है।किस्मत जौ साथ नहीं देती,पत्थर भी उछल कर आते है।

जिस की बाणो की वर्षा से ,
कही महा योद्धा घबराते है।
अर्जुन के जसा धनुर धारी ,
कीनर बन समय बीताते है।


मानव किसका अभिमान करें ,
दिन चढ़ते उतरकर आते है।किस्मत जौ साथ नहीं देती,पत्थर भी उछल कर आते है।

उकार ये सब कुछ ईस्वर का ,
सच्चे सन्त यही बताते है।
लोब झूठ कपट को छोड़ो ,
साँवरिया साथ निभाते है।


मानव किसका अभिमान करें ,
दिन चढ़ते उतरकर आते है।किस्मत जौ साथ नहीं देती,पत्थर भी उछल कर आते है।

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