अवधू मन बिन करम न होता
धर नहीं गिगन नहीं होता हम तुम दोनू कुण था।
आप अलख अंदर होई बैठा बून्द अमी रस छूटा।
एक बूंद का सकल पसारा परछ परछ होई झूठा।अवधू मन बिन करम न होता
धर नहीं गिगन नहीं होता हम तुम दोनू कुण था।
मात पिता मिल भेले होया करी करम की पुजा।
पहले पिता अकेला होता पुत्र जनमिया दूजा ॥ अवधू मन बिन करम न होता
धर नहीं गिगन नहीं होता हम तुम दोनू कुण था।
सात कुली सायर आठ कुली परबत नोंकुली नाग नहीं होता ।
अठारा करोड़ बनसपत नहीं था , कलम काई की करता ॥ अवधू मन बिन करम न होता
धर नहीं गिगन नहीं होता हम तुम दोनू कुण था।
ब्रह्मा नहीं था विष्णु नहीं था नहीं था शंकर देवा।
कहै कबीर मंडप नहीं था मांडन वाला भेजा ।अवधू मन बिन करम न होता
धर नहीं गिगन नहीं होता हम तुम दोनू कुण था।
अवधू मन बिन करम न होता
धर नहीं गिगन नहीं होता हम तुम दोनू कुण था।