मोरे कान्हा ने मारी नजरिया रे।
लाज की मारी इत उत ड़ोलूँ,घर जाने की भूली डगरिया रे ॥ मोरे कान्हा ने मारी नजरिया रे।
मेह बग़ीचा प्रेम सरोवर,मन पंछी के लागे बँसुरिया रे ॥ मोरे कान्हा ने मारी नजरिया रे।
तिरछी बिलोकनी मन्द हँसी,
मोरे जियरा में मारे कटरिया रे ॥ मोरे कान्हा ने मारी नजरिया रे।
मन मृग उरझ गयो अलकन में,
मोहे तन की न रही खबरिया रे ॥ मोरे कान्हा ने मारी नजरिया रे।
तिरछी है के फँसी मोरे मन में,
कान्हा की बाँकी सुरतिया रे ॥ मोरे कान्हा ने मारी नजरिया रे।
जो सुन लेगी सास हमारी,
घुसन न देगी दुवरिया रे ॥ मोरे कान्हा ने मारी नजरिया रे।
जो सुन लेगो बलम हमारो,
चढ़ने न देगो अटरिया रे ॥ मोरे कान्हा ने मारी नजरिया रे।
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मोरे कान्हा ने मारी नजरिया रे।