रामचंद्र कह गए सिया से, ऐसा कलयुग आएगा। हंस चुगेगा दाना दुनका, कौवा मोती खाएगा। कौवा मोती खाएगा।
धर्म भी होगा कर्म भी होगा लेकिन शर्म नहीं होगी। बात बात पर मात पिता को बेटा आंख दिखाएगा।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹हंस चुगेगा दाना दुनका, कौवा मोती खाएगा। कौवा मोती खाएगा।
राजा और प्रजा दोनों में, निस दिन होगी खींचातानी। कदम कदम पर दोनों करेंगे, अपनी अपनी मनमानी।🌹🌹🌹🌹🌹 जिसके हाथ में होगी लाठी, भैंस वही ले जाएगा।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹हंस चुगेगा दाना दुनका, कौवा मोती खाएगा। कौवा मोती खाएगा।
सुनो सिया कलयुग में काला, धन और काले मन होंगे। चोर उचक्के नगर सेठ और, प्रभु भक्त निर्धन होंगे। 🌹🌹🌹🌹🌹🌹 जो होगा लोभी और भोगी, वह जोगी कहलाएगा।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹हंस चुगेगा दाना दुनका, कौवा मोती खाएगा। कौवा मोती खाएगा।
मंदिर सुना सुना होगा भरी रहेगी मधुशाला। पिता के संग संग भरी सभा में, नाचेगी घर की बाला।🌹🌹🌹🌹🌹🌹 कैसा कन्यादान पिता ही, कन्या का धन खाएगा। 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹हंस चुगेगा दाना दुनका, कौवा मोती खाएगा। कौवा मोती खाएगा।
मूरख की प्रीत बुरी, जुए की जीत बुरी। बुरे संग बैठ बैठ भागे ही भागे। 🌹🌹🌹🌹 काजल की कोठरी में कैसे ही जतन करो, काजल का दाग भाई लागे ही लागे। 🌹🌹 कितना जत्ती हो कोई,कितना सती हो कोई, कामिनी के संग काम जागे ही जागे। 🌹🌹 सुनो कहे गोपी राम, जिसका है राम धाम। उसका तो फंद गले लागे ही लागे।
हे जिए,हे जिए
रामचंद्र कह गए सिया से, ऐसा कलयुग आएगा। हंस चुगेगा दाना दुनका, कौवा मोती खाएगा। कौवा मोती खाएगा।