तर्ज,खड़ी नीम के नीचे
खीचड़लो खावन ने कान्हो आ गयो। रुखो सुखो प्रेम खीचड़ो, सांवरियो गटका गयो।
भोली भाली जाट की बेटी, कर्मा बाई नाम जी। कर्मा का जद कर्म खुलया तो, सेवा मिल गई श्याम की।🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚 बाबुल सेवा ठाकुर की, संभला गयो।रुखो सुखो प्रेम खीचड़ो, सांवरियो गटका गयो।
निपट अनाड़ी छोरी कर्मा,भोग लगानो के जाने। थाली रख दी श्याम के आगे, ख्वानो है मन में ठाणे।🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚 बैठया बैठया दिन ढलने में आ गयो।रुखो सुखो प्रेम खीचड़ो, सांवरियो गटका गयो।
कर्मा बोली सुन सांवरिया, खिचड़ीलो नहीं खावेगो। तू भूखों रह जासी महाने, बापू से पिटवावेगो।🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚मन में सोची शायद यो, शरमा गयो।रुखो सुखो प्रेम खीचड़ो, सांवरियो गटका गयो।
धाबलिए को परदों कीनो, जच कर बैठ गई कर्मा। बेगो बेगो खींचड़ खा ले, अब तो तुम मत ना शरमा।🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚 भोली के चक्कर में, स्याणों आ गयो।रुखो सुखो प्रेम खीचड़ो, सांवरियो गटका गयो।
खिचड़लों खावन ने देखो,भाव खींचकर ल्याया है।ज्ञानी ध्यानी पार ना पाया,भोला भक्त बुलाया है।🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚 बिन्नु कान्हो भक्त को मान बढ़ा गयो।रुखो सुखो प्रेम खीचड़ो, सांवरियो गटका गयो।