इस योग्य हम कहां हैं दादी तुम्हें मनाएं। फिर भी मना रहे हैं, शायद तूं मान जाए।इस योग्य हम कहां हैं दादी तुम्हें मनाएं।
जब से जन्म लिया है, विषयों ने हम को घेरा। छल और कपट ने डाला,इस भोलेपन मन पे डेरा।☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️ सद्बुद्धि को अहम ने, हरदम रखा दबाए।इस योग्य हम कहां हैं दादी तुम्हें मनाएं।
निश्चय ही हम पतित हैं, लोभी हैं स्वार्थी हैं। जब तेरा ध्यान लगाएं, माया पुकारती है।☀️सुख भोगने की इच्छा, कभी तृप्त हो ना पाए।इस योग्य हम कहां हैं दादी तुम्हें मनाएं।
जग में जहां भी देखा, बस एक ही चलन है ।एक दूसरे के सुख में, खुद को बड़ी जलन है। कर्मों का लेखा-जोखा, कोई समझ ना पाए।इस योग्य हम कहां हैं दादी तुम्हें मनाएं
जब कुछ ना कर सके तो, तेरी शरण में आए। अपराध मानते हैं, झेलेंगे सब सजाएं।☀️☀️ बस तूं दरस दिखा दे, कुछ और हम ना चाहे।इस योग्य हम कहां हैं दादी तुम्हें मनाएं।