कैलाश पे तेरा डेरा है,धूने का धुआं घनेरा है। तन चिता की तूने राख मली, क्या रूप भयंकर तेरा। औंधे मुंह बंद आंखों से, ब्रह्मांड सारा देख रहा। पद्मासन में बैठा तु, करता जग का फेरा है। ओ त्रिनेत्र की धारी तेरी बात निराली है। जल में थल में नभ में, हो गूंज रहा जयकारा […]