कैलाश पे तेरा डेरा है,धूने का धुआं घनेरा है। तन चिता की तूने राख मली, क्या रूप भयंकर तेरा। औंधे मुंह बंद आंखों से, ब्रह्मांड सारा देख रहा। पद्मासन में बैठा तु, करता जग का फेरा है। ओ त्रिनेत्र की धारी तेरी बात निराली है। जल में थल में नभ में, हो गूंज रहा जयकारा है।गूंज रहा जयकारा है। जय जय महाकाल ओमकारा है।जय जय महाकाल ओमकारा है।
मौन में बैठा तू ,और गुंज का विस्तार करें। शोक समझे देव जिसे, उसका ही तू सिंगार करे।मौन में बैठा तू ,और गुंज का विस्तार करें। शोक समझे देव जिसे, उसका ही तू सिंगार करे। जन्म मरण की दूरी तु , तू अमृत की धारा है। सकल जगत का पिता तु ही, तु ही पालन हारा है।ओ त्रिनेत्र की धारी तेरी बात निराली है। जल में थल में नभ में, हो गूंज रहा जयकारा है।गूंज रहा जयकारा है। जय जय महाकाल ओमकारा है।जय जय महाकाल ओमकारा है।
जीवन नाव तू ही, तू ही तो पतवार है ।नदिया भी तू ही, और तू ही तो मझधार है।जीवन नाव तू ही, तू ही तो पतवार है ।नदिया भी तू ही, और तू ही तो मझधार है।जन्म मरण की दूरी तु , तू अमृत की धारा है। सकल जगत का पिता तु ही, तु ही पालन हारा है।ओ त्रिनेत्र की धारी तेरी बात निराली है। जल में थल में नभ में, हो गूंज रहा जयकारा है।गूंज रहा जयकारा है। जय जय महाकाल ओमकारा है।जय जय महाकाल ओमकारा है।