दोहा, देखो समेट के बचपन की यादें, यार से मिलने यार चला।
यार आज देखो याद तेरी आई, क्या किस्से थे बचपन के अपने। गुरुकुल की गलियों में लोग कहते थे, दो आंखों के थे एक ही सपने। जानते हो तुम तो मन की सारी बातें, आया तेरे पास चलकर दास तेरा धामा। जाओ पहरेदार कह दो जाकर मेरे श्याम से, बिछड़े सखा से मिलने आया है सुदामा।जाओ पहरेदार कह दो जाकर मेरे श्याम से, बिछड़े सखा से मिलने आया है सुदामा।
मैं रूठता तो तुम थे मनाते, श्याम अपने यारों से रिश्ते निभाते। जितने हालत धागों से गुथे हो, चेहरे की रंगत से सब जान जाते। बोली सुशीला जाओ द्वारका, श्याम तुम्हारे मीत पुराने। आशिक दरिया दो सागर से, चले सुदामा हाल सुनाने।जानते हो तुम तो मन की सारी बातें, आया तेरे पास चलकर दास तेरा धामा।जाओ पहरेदार कह दो जाकर मेरे श्याम से, बिछड़े सखा से मिलने आया है सुदामा।जाओ पहरेदार कह दो जाकर मेरे श्याम से, बिछड़े सखा से मिलने आया है सुदामा।
शीश ना पगड़ी पाव ना जूती, हरिहर को मेरा हाल सुनाना। आया तेरा याचक एक दुर्बल, पूछे जो नाम सुदामा बताना। सुनते ही नाम छोड़ सिंहासन, नंगे पांव दौड़ कर आए। देख दशा मित्र सुदामा की, चरण पखार कर गले से लगाए। सच यह कहानी लिखी है पुराण में, कृष्ण का यार था गरीब सुदामा।जाओ पहरेदार कह दो जाकर मेरे श्याम से, बिछड़े सखा से मिलने आया है सुदामा।जाओ पहरेदार कह दो जाकर मेरे श्याम से, बिछड़े सखा से मिलने आया है सुदामा।
जाओ पहरेदार कह दो जाकर मेरे श्याम से, बिछड़े सखा से मिलने आया है सुदामा।जाओ पहरेदार कह दो जाकर मेरे श्याम से, बिछड़े सखा से मिलने आया है सुदामा।जाओ पहरेदार कह दो जाकर मेरे श्याम से, बिछड़े सखा से मिलने आया है सुदामा।जाओ पहरेदार कह दो जाकर मेरे श्याम से, बिछड़े सखा से मिलने आया है सुदामा।