कब से तरसती अखियां, इन अंखियों में समाए हैं। आज बिरज में कान्हा आए हैं। नंद बाबा के आंगन में, भर के खुशियां जगाए हैं।आज बिरज में कान्हा आए हैं।आज बिरज में कान्हा आए हैं।
मुरली मनोहर कृष्ण कन्हैया, यमुना तट पर विराजे हैं। मोर मुकुट और कान में कुंडल, हाथ में मुरली साजे है।मुरली मनोहर कृष्ण कन्हैया, यमुना तट पर विराजे हैं। मोर मुकुट और कान में कुंडल, हाथ में मुरली साजे है। यशोदा मैया को तंग कर कर ,मेरे कान्हा धूम मचाए हैं। बृजवासी और ग्वाल बाल, गोपी संग सबको नचाए हैं। वह नटखट लीलाधर मोहन, माखन भर मटकी चुराए हैं।आज बिरज में कान्हा आए हैं।आज बिरज में कान्हा आए हैं।
कान्हा की मनभावन मूरत, मेरे मन को भाती है। और उसकी प्यारी सी सूरत, मेरे दिल को लुभाती है।कान्हा की मनभावन मूरत, मेरे मन को भाती है। और उसकी प्यारी सी सूरत, मेरे दिल को लुभाती है। निहारूं उनको जी भर कर, मेरी आंखों को आराम मिले। मैं राधा नाम में रम जाऊं, और मुझको मेरे श्याम मिले। तीन लोक के स्वामी है वह, दर्शन देने आए हैं।आज बिरज में कान्हा आए हैं।आज बिरज में कान्हा आए हैं।
कब से तरसती अखियां, इन अंखियों में समाए हैं। आज बिरज में कान्हा आए हैं। नंद बाबा के आंगन में, भर के खुशियां जगाए हैं।आज बिरज में कान्हा आए हैं।आज बिरज में कान्हा आए हैं।कब से तरसती अखियां, इन अंखियों में समाए हैं। आज बिरज में कान्हा आए हैं। नंद बाबा के आंगन में, भर के खुशियां जगाए हैं।आज बिरज में कान्हा आए हैं।आज बिरज में कान्हा आए हैं।