कन्या रूप स्वरूप है मेरा, कंजक रूप में आती हूं।कन्या रूप स्वरूप है मेरा, कंजक रूप में आती हूं। जो श्रद्धा से भोजन कराते ,उन पर कृपा लुटाती हूं।कन्या रूप स्वरूप है मेरा,
श्रद्धा भाव से नवरात्रों में ,जो भी ज्योत जगाये। नारी का सम्मान करें जो, कभी ना ठोकर खाये।श्रद्धा भाव से नवरात्रों में ,जो भी ज्योत जगाये। नारी का सम्मान करें जो, कभी ना ठोकर खाये। उसके पथ में करूं उजाले, बुझते दीप जलाती हूं।जो श्रद्धा से भोजन कराते ,उन पर कृपा लुटाती हूं।कन्या रूप स्वरूप है मेरा,
ममता की मूरत हूं मैं तो ,में ही जग कल्याणी हूं। सिंह वाहिनी कहलाती हूं, मैं सुख की वरदानी हूं।ममता की मूरत हूं मैं तो ,में ही जग कल्याणी हूं। सिंह वाहिनी कहलाती हूं, मैं सुख की वरदानी हूं। जब जब मेरे भक्त पुकारे, पल में दौड़ी आती हूं।जो श्रद्धा से भोजन कराते ,उन पर कृपा लुटाती हूं।कन्या रूप स्वरूप है मेरा,
मैं ही दुर्गा में ही शक्ति, अष्टभुजा अवतारी हूं। चंडी बन कर दुष्ट मारती, मे हीं अर्धकुमारी हूं।मैं ही दुर्गा में ही शक्ति, अष्टभुजा अवतारी हूं। चंडी बन कर दुष्ट मारती, मे हीं अर्धकुमारी हूं। केवल मेरी शरण जो आए, उनकी लाज बचाती हूं।जो श्रद्धा से भोजन कराते ,उन पर कृपा लुटाती हूं।कन्या रूप स्वरूप है मेरा,
कन्या रूप स्वरूप है मेरा, कंजक रूप में आती हूं।कन्या रूप स्वरूप है मेरा, कंजक रूप में आती हूं। जो श्रद्धा से भोजन कराते ,उन पर कृपा लुटाती हूं।कन्या रूप स्वरूप है मेरा,