वो इंद्र जिनकी पादुका की सेवा करते मान से। वह नाग कंठ में सजाये रहते हैं आयाम मे। सब योगी जिनकी वंदना करे सुबहो शाम मे। वो काशीनाथ भोले को मैं भजूं आठों याम में।
वो कंठ व्याल चंद्र भाल,नर कपाल धारते। वो पांच तत्व के पिता है नंदी पे विहारते। जगद्गुरु जगत पिता जगत के कष्ट हारते।वो काशीनाथ भोले को मैं भजूं आठों याम में।
किरीट सर्प रूप में जो शीश पर है धारते। वो भूतनाथ गौरी संग ऊर मनुष्य वास्ते। समस्त सिद्धियां है जिनकी तर्जनी के भाग में।वो काशीनाथ भोले को मैं भजूं आठों याम में।
असंख्य भानु का है तेज जिनके शीश माथ पे।कपूर सम है गौर पाप कांपे जिनके नाम से। मलयगिरी का अंगराध सोहे भुज विशाल पे।वो काशीनाथ भोले को मैं भजूं आठों याम में।
त्रिशूल डमरू खड़क से जो करते पाप नाश है। वह गौर वर्ण धारी देव देते ज्ञान त्रान है। तांडव करे प्रचंड जो नटराज तीनों काल मे।वो काशीनाथ भोले को मैं भजूं आठों याम में।
है वृषभ ध्वज को धारते अधर्म कर्म तारते।गरल भुजंग सर्व अंग में प्रभु है धारते। वीरभद्र करते मान बनके जिनका वाण है।वो काशीनाथ भोले को मैं भजूं आठों याम में।
दिव्य रत्न झूले जिनके पादुका प्रचंड में। बल भी है अनंत जिनके शूल में भुज दंड में। मृत्यु जिनके पृष्ठ भाग में सदा विराजते।वो काशीनाथ भोले को मैं भजूं आठों याम में।
पंच भूतनाथ है विशाल कृति साथ है। पूजे शिव को प्रेम से तो शिव भी तेरे साथ है।ताप शाप दुःख नाश करते निज निवास में।वो काशीनाथ भोले को मैं भजूं आठों याम में।भजूं आठों याम में।मैं भजूं आठों याम में।भजूं आठों याम में।मैं भजूं आठों याम में।